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ख़ैर लाया तो जुनूँ दीवार से दर की तरफ़ | शाही शायरी
KHair laya to junun diwar se dar ki taraf

ग़ज़ल

ख़ैर लाया तो जुनूँ दीवार से दर की तरफ़

नय्यर सुल्तानपुरी

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ख़ैर लाया तो जुनूँ दीवार से दर की तरफ़
अब नज़र जाने लगी बाहर से अंदर की तरफ़

कश्ती-ए-उम्मीद के हर बादबाँ उड़ने लगे
किस ने रुख़ मोड़ा हवाओं का समुंदर की तरफ़

यूँ भी होता है मदारात-ए-जुनूँ के शौक़ में
फूल जैसे हाथ उठ जाते हैं पत्थर की तरफ़

हम ने समझे थे कि ये होगा मआल-ए-कार-ए-इश्क़
रुख़ किया बाद-ए-बहारी ने मिरे घर की तरफ़

दी है 'नय्यर' मुझ को साक़ी ने ये कैसी ख़ास मय
सब की नज़रें उठ रही हैं मेरे साग़र की तरफ़