ख़ैर लाया तो जुनूँ दीवार से दर की तरफ़
अब नज़र जाने लगी बाहर से अंदर की तरफ़
कश्ती-ए-उम्मीद के हर बादबाँ उड़ने लगे
किस ने रुख़ मोड़ा हवाओं का समुंदर की तरफ़
यूँ भी होता है मदारात-ए-जुनूँ के शौक़ में
फूल जैसे हाथ उठ जाते हैं पत्थर की तरफ़
हम ने समझे थे कि ये होगा मआल-ए-कार-ए-इश्क़
रुख़ किया बाद-ए-बहारी ने मिरे घर की तरफ़
दी है 'नय्यर' मुझ को साक़ी ने ये कैसी ख़ास मय
सब की नज़रें उठ रही हैं मेरे साग़र की तरफ़
ग़ज़ल
ख़ैर लाया तो जुनूँ दीवार से दर की तरफ़
नय्यर सुल्तानपुरी