ख़बर नहीं कि सफ़र है कि है क़याम अभी
तिलिस्म-ए-शहर में खोए हैं ख़ास-ओ-आम अभी
सदा भी देगा कभी तो सुकूत का सहरा
किसी को होने तो दो ख़ुद से हम-कलाम अभी
जो देखिए तो ज़माना है तेज़-रौ कितना
तुलू-ए-सुब्ह अभी है तो वक़्त-ए-शाम अभी
वो क़हत-ए-आब है दरिया भी सारे ख़ुश्क हुए
रवाँ जो अब्र है करता नहीं क़याम अभी
अब इत्तिफ़ाक़ से बच कर निकल गए तो क्या
रह-ए-तलब में तो 'नादिर' हैं कितने दाम अभी
ग़ज़ल
ख़बर नहीं कि सफ़र है कि है क़याम अभी
अतहर नादिर