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कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए | शाही शायरी
kaun sulagte aansu roke aag ke TukDe kaun chabae

ग़ज़ल

कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए

नरेश कुमार शाद

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कौन सुलगते आँसू रोके आग के टुकड़े कौन चबाए
ऐ हम को समझाने वाले कोई तुझे क्यूँ कर समझाए

जीवन के अँधियारे पथ पर जिस ने तेरा साथ दिया था
देख कहीं वो कोमल आशा आँसू बन कर टूट न जाए

इस दुनिया के रहने वाले अपना अपना ग़म खाते हैं
कौन पराया रोग ख़रीदे कौन पराया दुख अपनाए

हाए मिरी मायूस उम्मीदें वाए मिरे नाकाम इरादे
मरने की तदबीर न सूझी जीने के अंदाज़ न आए

इस दुनिया के ग़म-ख़ाने में ग़म से इतनी फ़ुर्सत कब है
कौन सितारों का मुँह चूमे कौन बहारों में लहराए

ज़ब्त भी कब तक हो सकता है सब्र की भी इक हद होती है
पल भर चैन न पाने वाला कब तक अपना रोग छुपाए

'शाद' वही आवारा शाएर जिस ने तुझ से प्यार किया था
शहरों शहरों घूम रहा है अरमानों की लाश उठाए