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कौन सा इश्क़-ए-बुताँ में हमें सदमा न हुआ | शाही शायरी
kaun sa ishq-e-butan mein hamein sadma na hua

ग़ज़ल

कौन सा इश्क़-ए-बुताँ में हमें सदमा न हुआ

रसा रामपुरी

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कौन सा इश्क़-ए-बुताँ में हमें सदमा न हुआ
दर्द-ए-फ़ुर्क़त न हुआ ग़म न हुआ क्या न हुआ

ग़ैर ने बात तो की बात तो पूछी मेरी
ख़ैर से तुम को तो इतना भी सलीक़ा न हुआ

महव-ए-हैरत हैं तो दोनों हैं तिरी महफ़िल में
हम से पर्दा हुआ आईने से पर्दा न हुआ

उन की ये ख़ूबी-ए-अख़्लाक़ कि व'अदा तो किया
मेरी ये शोमी-ए-तक़दीर कि ईफ़ा न हुआ

जज़्बा-ए-इश्क़ से हम उन को बुला लेते 'रसा'
ये भी कम्बख़्त तबीअत को गवारा न हुआ