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कौन कहता है कि यूँही राज़दार उस ने किया | शाही शायरी
kaun kahta hai ki yunhi raazdar usne kiya

ग़ज़ल

कौन कहता है कि यूँही राज़दार उस ने किया

सलीम सिद्दीक़ी

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कौन कहता है कि यूँही राज़दार उस ने किया
ख़ूब परखा है मुझे तब ए'तिबार उस ने किया

बे-हिजाब-ए-नफ़्स था वो या कोई ग़ाफ़िल बदन
पैरहन जो भी दिया है तार तार उस ने किया

आज फिर अपनी समाअत सौंप दी उस ने हमें
आज फिर लहजा हमारा इख़्तियार उस ने किया

सिर्फ़ इक अक्स-ए-वफ़ा पर ही नहीं डाली है ख़ाक
आईना-ए-साज़ों को भी गर्द-ओ-ग़ुबार उस ने किया

अपने बाम-ओ-दर पे रौशन देर तक रक्खा नहीं
हर चराग़-ए-तमकनत को बे-दयार उस ने किया

मैं फ़रेब-ए-शाम की बाहोँ में गुम था और मिरा
सुब्ह की पहली किरन तक इंतिज़ार उस ने किया

ज़िंदगी से जंग में ये म'अरका होता रहा
इक रजज़ मैं ने पढ़ा और एक वार उस ने किया

वो अकेला था रह-ए-निस्बत में लेकिन जाने क्यूँ
मेरी परछाईं को भी ख़ुद में शुमार उस ने किया