कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं
नाम लूँ किस किस का मुझ को एक बीमारी नहीं
आग कितनी ले के निकला था मिरा दूद-ए-जिगर
वो फ़ज़ा है कौन जिस में कोई चिंगारी नहीं
यास से क्यूँ देखते हैं दोस्त ऐ आज़ार-ए-दिल
पूछते हैं क्या मुझे तो कोई बीमारी नहीं
हाथ रख कर इक ज़रा देखो तप-ए-ग़म का असर
ये तुम्हारा ही जलाया दिल है चिंगारी नहीं
दिल ने रग रग से छुपा रक्खा है तेरा राज़-ए-इश्क़
जिस को कह दे नब्ज़ ऐसी मेरी बीमारी नहीं
क़ैद हो कर मैं ने खोली हम-सफ़ीरों की ज़बाँ
किस गुलिस्ताँ में मिरा ज़िक्र-ए-गिरफ़्तारी नहीं
ग़ज़ल
कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं
साक़िब लखनवी