कौन दुनिया से बादा-ख़्वार उठा
चश्म-ए-तर अब्र-ए-नौ-बहार उठा
खा के ग़श गिर पड़े खड़े बैठे
बैठ कर इस अदा से यार उठा
आतिश-ए-इश्क़ देख कर मालिक
अल-अमाँ अल-अमाँ पुकार उठा
दर्द ताज़ीम-ए-मर्ग को दिल में
शब-ए-फ़ुर्क़त हज़ार बार उठा
जीते-जी दौर-ए-आसमानी में
न ज़मीं से ये ख़ाकसार उठा
अब्र-ए-रहमत ने दे दिया छींटा
बाद मरने के जब ग़ुबार उठा
वहशत-ए-दिल ने फिर निकाले पाँव
फिर तहम्मुल का इख़्तियार उठा
फिर जुनूँ फ़स्ल-ए-गुल में लाया रंग
फिर मैं होने को शर्मसार उठा
हाल-ए-'बीमार' जा-ए-रिक़्क़त है
मरहम-ए-दिल का ए'तिबार उठा
चोर ज़ख़्म-ए-जिगर में बैठ गया
चारागर हो के शर्मसार उठा
ग़ज़ल
कौन दुनिया से बादा-ख़्वार उठा
शैख़ अली बख़्श बीमार