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करते रहें वाबस्ता उन से चाहे जो अफ़्साने लोग | शाही शायरी
karte rahen wabasta un se chahe jo afsane log

ग़ज़ल

करते रहें वाबस्ता उन से चाहे जो अफ़्साने लोग

कशफ़ी लखनवी

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करते रहें वाबस्ता उन से चाहे जो अफ़्साने लोग
इश्क़ में रुस्वाई की पर्वा करते हैं कब दीवाने लोग

किस को सदाएँ देता है तू शहर-ए-तमन्ना में ऐ दिल
कौन यहाँ है तेरा साथी सभी तो हैं बेगाने लोग

किस को सुनाएँ हाल-ए-तबाही किस को दिखाएँ ज़ख़्म-ए-जिगर
दौर-ए-सितम है रहम कहाँ अब ज़ुल्म के हैं दीवाने लोग

शैख़-ओ-बरहमन की बातों में दैर-ओ-हरम के झगड़े हैं
चाल में इन की फिर क्यूँ आएँ हम जैसे मस्ताने लोग

फ़ैज़-ए-जुनूँ से जाग उठा है आज मुक़द्दर सहरा का
फूल खिलाते हैं इस में भी देखिए कुछ दीवाने लोग

बचते हुए सब से आए थे महफ़िल-ए-ज़िंदाँ की जानिब
मिल ही गए उफ़ हम को यहाँ भी कुछ जाने पहचाने लोग

अहल-ए-जुनूँ के फ़ैज़ से कशफ़ी दुनिया में बेदार ही है
बात पते की कह देते हैं अक्सर ये दीवाने लोग