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करो न देर जहाँ में जहाँ से आगे चलो | शाही शायरी
karo na der jahan mein jahan se aage chalo

ग़ज़ल

करो न देर जहाँ में जहाँ से आगे चलो

अमीरुल्लाह तस्लीम

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करो न देर जहाँ में जहाँ से आगे चलो
यहाँ गुमान-ए-ख़तर है क़दम बढ़ाए चलो

यहाँ फ़रेब-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ अक्सर है
ख़ुदा के वास्ते इतना न मुँह उठाए चलो

शिकस्ता-पा हूँ कहीं साथ से न रह जाऊँ
मुझे भी हाथ ज़रा दोस्तो लगाए चलो

अभी तो हुस्न-ए-अमल का ज़माना बाक़ी है
वहाँ की बिगड़ी हुई कुछ यहीं बनाए चलो

इधर-उधर कहीं भर कर तरारा जा न पड़े
समंद-ए-उम्र-ए-रवाँ को ज़रा दबाए चलो

अदम में तरसोगे दर्द-ए-जिगर को ऐ 'तस्लीम'
जो हो सके कोई सीने पे तीर खाए चलो