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करे दरिया न पुल मिस्मार मेरे | शाही शायरी
kare dariya na pul mismar mere

ग़ज़ल

करे दरिया न पुल मिस्मार मेरे

महशर बदायुनी

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करे दरिया न पुल मिस्मार मेरे
अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे

बहुत दिन गुज़रे अब देख आऊँ घर को
कहेंगे क्या दर-ओ-दीवार मेरे

वहीं सूरज की नज़रें थीं ज़ियादा
जहाँ थे पेड़ साया-दार मेरे

वही ये शहर है तो शहर वालो
कहाँ हैं कूचा-ओ-बाज़ार मेरे

तुम अपना हाल-ए-महजूरी बताओ
मुझे तो खा गए आज़ार मेरे

जिन्हें समझा था जाँ-परवर मैं अब तक
वो सब निकले कफ़न-बरदार मेरे

गुज़रते जा रहे हैं दिन हवा से
रहें ज़िंदा-सलामत यार मेरे

दबा जिस से उसी पत्थर में ढल कर
बिके चेहरे सर-ए-बाज़ार मेरे

दरीचा क्या खुला मेरी ग़ज़ल का
हवाएँ ले उड़ीं अशआर मेरे