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कर सके दफ़्न न उस कूचे में अहबाब मुझे | शाही शायरी
kar sake dafn na us kuche mein ahbab mujhe

ग़ज़ल

कर सके दफ़्न न उस कूचे में अहबाब मुझे

मीर तस्कीन देहलवी

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कर सके दफ़्न न उस कूचे में अहबाब मुझे
ख़ाक में दिल की कुदूरत ने दिया दाब मुझे

हिज्र में पास न है ज़हर न ख़ंजर अफ़्सोस
न दिए मौत के भी चर्ख़ ने अस्बाब मुझे

क़ासिद आया है वहाँ से तो ज़रा थम ऐ होश
बात तो करने दे उस से दिल-ए-बेताब मुझे

नाम-ए-'तस्कीं' पे ये मज़मून-ए-तपिश ना-ज़ेबा
था तख़ल्लुस जो सज़ा-वार तो बेताब मुझे