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कर दिया दहर को अंधेर का मस्कन कैसा | शाही शायरी
kar diya dahr ko andher ka maskan kaisa

ग़ज़ल

कर दिया दहर को अंधेर का मस्कन कैसा

नातिक़ गुलावठी

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कर दिया दहर को अंधेर का मस्कन कैसा
हर तरफ़ नाम किया आप ने रौशन कैसा

लग गई एक झड़ी जब मिरा जी भर आया
लोग सावन को लिए फिरते हैं सावन कैसा

दुख़्तर-ए-रज़ से उलझते हो ये क्या हज़रत-ए-शैख़
बंदा-परवर ये बुढ़ापे में लड़कपन कैसा

दोस्त ही था जिसे 'नातिक़' न हुई कुछ पर्वा
वर्ना रोया है मिरे हाल पे दुश्मन कैसा