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कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है | शाही शायरी
kanware aansuon se raat ghael hoti rahti hai

ग़ज़ल

कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है

अहमद कमाल परवाज़ी

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कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है
सितारे झड़ते रहते हैं रेहरसल होती रहती है

सियासी मश्क़ कर के तुम तो दिल्ली लौट जाते हो
यहाँ सहमे हुए लोगों में हलचल होती रहती है

वहाँ रक्खे हुए मोहरे बराबर मरते रहते हैं
इधर खेली हुई बाज़ी मुकम्मल होती रहती है

मैं सब कुछ भूल के जाने की कोशिश करता रहता हूँ
मगर गुज़री हुई वो रात पागल होती रहती है

न जाने क्या ख़राबी आ गई है मेरे लहजे में
न जाने क्यूँ मिरी आवाज़ बोझल होती रहती है