कमाल-ए-हुस्न का जिस से तुम्हें ख़ज़ाना मिला 
मुझे इसी से ये अंदाज़-ए-आशिक़ाना मिला 
जबीन-ए-शौक़ को आसूदगी नसीब हुई 
सर-ए-नियाज़ को जब तेरा आस्ताना मिला 
तमाम उम्र सहारों की जुस्तुजू में रहा 
वो बद-नसीब जिसे तेरा आसरा न मिला 
कमी न थी मिरी दुनिया में आश्नाओं की 
सितम तो ये है कोई दर्द-आश्ना न मिला 
सनम-कदों में तो असनाम जल्वा-फ़रमा थे 
ख़ुदा के घर में भी मुझ को कहीं ख़ुदा न मिला 
तुम्हें तो अपनी जफ़ाओं की ख़ूब दाद मिली 
मिरी वफ़ाओं का मुझ को कोई सिला न मिला 
चमन में रह के भी 'आतिश' ख़िज़ाँ-नसीबों को 
कभी बहार का पैग़ाम-ए-जाँ-फ़ज़ा न मिला
        ग़ज़ल
कमाल-ए-हुस्न का जिस से तुम्हें ख़ज़ाना मिला
अातिश बहावलपुरी

