कैसे पता चलेगा अगर सामना न हो
मैं जिस को चाहता हूँ मुझे चाहता न हो
शब के सफ़र में चाँद सितारे तो साथ हैं
कुछ और मेहरबान फ़लक हो तो क्या न हो
बिछड़ा वो मुझ से ऐसे न बिछड़े कभी कोई
अब यूँ मिला है जैसे वो पहले मिला न हो
पीता हूँ रोज़ उस की नसीहत के बावजूद
मेरे गुनाह की कहीं दोहरी सज़ा न हो
रखता हूँ याद इस लिए हर फ़स्ल-ए-गुल 'शहाब'
दिन हों बुरे हज़ार मगर दिल बुरा न हो
ग़ज़ल
कैसे पता चलेगा अगर सामना न हो
मुस्तफ़ा शहाब