कैसा ही दोस्त हो न कहे राज़-ए-दिल कोई
निकली जो बात मुँह से तो फैली जहान में
सच सच कहो ये बात बनाना नहीं पसंद
क्या कह रहे थे ग़ैर अभी चुपके से कान में
पूछा है हाल-ए-ज़ार तो सुन लो ख़ता-मुआफ़
कुछ बात मेरे होंटों में है कुछ ज़बान में
आशिक़ से पूछिए न सर-ए-बज़्म हाल-ए-दिल
पर्दे की बात सुनते हैं चुपके से कान में
फ़ुर्क़त में क्या बताऊँ कि दिन है कि रात है
आँखों को सूझता नहीं रोने के ध्यान में
क़स्र-ए-जहाँ है तेरे फ़क़ीरों का झोंपड़ा
महलों से बढ़ के चैन है अपने मकान में
दो दिन की ज़िंदगी में जो चाहे कोई करे
रह जाती है भलाई बुराई जहान में
ग़ज़ल
कैसा ही दोस्त हो न कहे राज़-ए-दिल कोई
लाला माधव राम जौहर