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कहते हैं नाला-ए-हज़ीं सुन के | शाही शायरी
kahte hain nala-e-hazin sun ke

ग़ज़ल

कहते हैं नाला-ए-हज़ीं सुन के

शाद लखनवी

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कहते हैं नाला-ए-हज़ीं सुन के
सौ दिल-गुदाज़ हैं धुन के

सर अगर काटना है चुन चुन के
आस्तीन चढ़ाओ चुन चुन के

शम-ओ-परवाना शब को थे दिल-सोज़
रह गए सुब्ह तक वो जल-भुन के

घुन लगा मौत का जो आ'ज़ा में
उस्तुख़्वाँ ख़ाक हो गए घुन के

मैं वो नालाँ हूँ जिस के हम-साया
कोसते हैं फ़ुग़ाँ मिरी सुन के

कट सका कोह-ए-ग़म न आख़िर-कार
कोहकन सर को रह गया धुन के

नाम-आवर जो 'मीर' थे ऐ 'शाद'
अब हमीं इक निशान हैं उन के