कहते हैं नाला-ए-हज़ीं सुन के
सौ दिल-गुदाज़ हैं धुन के
सर अगर काटना है चुन चुन के
आस्तीन चढ़ाओ चुन चुन के
शम-ओ-परवाना शब को थे दिल-सोज़
रह गए सुब्ह तक वो जल-भुन के
घुन लगा मौत का जो आ'ज़ा में
उस्तुख़्वाँ ख़ाक हो गए घुन के
मैं वो नालाँ हूँ जिस के हम-साया
कोसते हैं फ़ुग़ाँ मिरी सुन के
कट सका कोह-ए-ग़म न आख़िर-कार
कोहकन सर को रह गया धुन के
नाम-आवर जो 'मीर' थे ऐ 'शाद'
अब हमीं इक निशान हैं उन के
ग़ज़ल
कहते हैं नाला-ए-हज़ीं सुन के
शाद लखनवी