EN اردو
कहीं था मैं मुझे होना कहीं था | शाही शायरी
kahin tha main mujhe hona kahin tha

ग़ज़ल

कहीं था मैं मुझे होना कहीं था

मोहम्मद अहमद

;

कहीं था मैं मुझे होना कहीं था
मैं दरिया था मगर सहरा-नशीं था

शिकस्त-ओ-रेख़्त कैसी फ़त्ह कैसी
कि जब कोई मुक़ाबिल ही नहीं था

मिले थे हम तो मौसम हँस दिए थे
जहाँ जो भी मिला ख़ंदाँ-जबीं था

सवेरा था शब-ए-तीरा के आगे
जहाँ दीवार थी रस्ता वहीं था

मिली मंज़िल किसे कार-ए-वफ़ा में
मगर ये रास्ता कितना हसीं था

जिलौ में तिश्नगी आँखों में साहिल
कहीं सीने में सहरा जा-गुज़ीं था