कही न उन से जो होंटों पे बात आई भी
कि आश्नाई भी थी शरम-ए-आश्नाई भी
कोई तलब थी तो दस्त-ए-सवाल फैलाते
मगर मिली थी कहाँ सूरत-ए-गदाई भी
कहो हवा से चले आज रात थम थम कर
कि आग है मिरे दामन में कुछ पराई भी
तिरे करम के फ़साने तो शहर भर से कहे
तिरे सितम की कहाँ जा के दें दहाई भी
तिरी सदा पे गुमाँ धड़कनों का होता था
अजब था अब के सुकूत-ए-शब-जुदाई भी
तुम्हारी हम-सफ़री के भी थे बहुत एहसाँ
हुई है वज्ह-ए-नदामत शिकस्ता-पाई भी
नज़र बुझी तो मिले रौशनी कहाँ 'हशमी'
जला के शम्अ' बहुत आँख से लगाई भी

ग़ज़ल
कही न उन से जो होंटों पे बात आई भी
जलील हश्मी