कहे देता हूँ गो है तो नहीं ये बात कहने की
तिरी ख़्वाहिश नहीं दिल में ज़्यादा देर रहने की
बचा कर दिल गुज़रता जा रहा हूँ हर तअ'ल्लुक़ से
कहाँ उस आबले को ताब है अब चोट सहने की
रग-ओ-पै में न हंगामा करे तो क्या करे आख़िर
इजाज़त जब नहीं इस रंज को आँखों से बहने की
बस अपनी अपनी तरजीहात अपनी अपनी ख़्वाहिश है
तुझे शोहरत कमाने की मुझे इक शे'र कहने की
जहाँ का हूँ वहीं की रास आएगी फ़ज़ा मुझ को
ये दुनिया भी भला कोई जगह है मेरे रहने की
जो कल 'इरफ़ान' पर गुज़री सुना कुछ उस के बारे में
ख़बर तुम ने सुनी तूफ़ान में दरिया के बहने की
ग़ज़ल
कहे देता हूँ गो है तो नहीं ये बात कहने की
इरफ़ान सत्तार