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कहाँ किसी को दिखाई गई है ख़ामोशी | शाही शायरी
kahan kisi ko dikhai gai hai KHamoshi

ग़ज़ल

कहाँ किसी को दिखाई गई है ख़ामोशी

अासिफ़ रशीद असजद

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कहाँ किसी को दिखाई गई है ख़ामोशी
बग़ैर जिस्म बनाई गई है ख़ामोशी

तज़ाद ये है बना कर खनकती मिट्टी से
मिरे लहू में मिलाई गई है ख़ामोशी

बला का शोर उंडेला गया है कानों में
मगर ज़बाँ को सिखाई गई है ख़ामोशी

ज़मीं पे इस का गुज़ारा नहीं था इस बाइ'स
ख़ला के बीच बसाई गई है ख़ामोशी

कुछ इस लिए भी हुआ शोर-ए-बज़्म-ए-मय कि उन्हें
ग़ज़ल बना के सुनाई गई है ख़ामोशी