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कहाँ है कोई ख़ुदा का ख़ुदा के बंदों में | शाही शायरी
kahan hai koi KHuda ka KHuda ke bandon mein

ग़ज़ल

कहाँ है कोई ख़ुदा का ख़ुदा के बंदों में

क़ैशर शमीम

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कहाँ है कोई ख़ुदा का ख़ुदा के बंदों में
घिरा हुआ हूँ अभी तक अना के बंदों में

न कोई सम्त मुक़र्रर न कोई जा-ए-क़रार
है इंतिशार का आलम हवा के बंदों में

वो कौन है जो नहीं अपनी मस्लहत का ग़ुलाम
कहाँ है बू-ए-वफ़ा अब वफ़ा के बंदों में

ख़ुदा करे कि समाअ'त से मैं रहूँ महरूम
कभी जो ज़िक्र हो मेरा रिया के बंदों में

सज़ाएँ मेरी तरह हँस के झेलने वाला
नहीं है कोई भी अहद-ए-सज़ा के बंदों में

ना आफ़ियत की सहर है न इम्बिसात की शाम
हूँ एक उम्र से सहरा बला के बंदों में

सुख़न शनास है कितना ये पूछ लूँ 'क़ैसर'
नज़र वो आए जो हर्फ़-ओ-नवा के बंदों में