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कहाँ गए शब-ए-महताब के जमाल-ज़दा | शाही शायरी
kahan gae shab-e-mahtab ke jamal-zada

ग़ज़ल

कहाँ गए शब-ए-महताब के जमाल-ज़दा

अताउर्रहमान जमील

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कहाँ गए शब-ए-महताब के जमाल-ज़दा
अकेला शहर में फिरता हूँ मैं ख़याल-ज़दा

तुम्हारी बज़्म से जब भी उठे तो हाल-ज़दा
कभी जवाब के मारे कभी सवाल-ज़दा

तिरे फ़िराक़ के मारे नज़र तो आते हैं
निगार-ए-शेर कहाँ हैं तिरे विसाल-ज़दा

न देखो यूँ मिरी जानिब उदास आँखों से
कि मुझ से पहले भी गुज़रे बहुत कमाल-ज़दा

सितारे डूब रहे हैं 'जमील' सो जाओ
ये कारोबार-ए-जहाँ कब न था मआ'ल-ज़दा