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कहा गया न कभी और कभी सुना न गया | शाही शायरी
kaha gaya na kabhi aur kabhi suna na gaya

ग़ज़ल

कहा गया न कभी और कभी सुना न गया

रख़शां हाशमी

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कहा गया न कभी और कभी सुना न गया
मैं ऐसा हर्फ़ हूँ जो आज तक लिखा न गया

दबा के होंटों में लाई थी मुद्दआ क्या क्या
मगर वो सामने आया तो कुछ कहा न गया

बिछड़ के तुम से अभी तक भटक रही हूँ मैं
तुम्हारे घर की तरफ़ कोई रास्ता न गया

अभी भी याद है तुम को हमारे हाथ की चाय
ख़ुदा का शुक्र अभी तक वो ज़ाइक़ा न गया

कई मवाक़े' मिरी ज़िंदगी में आए मगर
किसी पे हँस लिए इतना कि फिर हँसा न गया

मैं अपने चेहरे पर आँखें तलाश करती रही
वो जब तलक मुझे अपनी झलक दिखा न गया

मैं आते आते निशाने पे रह गई 'रख़्शाँ'
कि अब के बार भी उस का ग़लत निशाना गया