कभी तुम ने कुछ तो दिया नहीं कभी हम ने कुछ तो लिया नहीं
हमें ज़िंदगी से हो बहस क्या कोई वाक़िआ' तो हुआ नहीं
मगर ऐसी कोई ख़लिश भी थी जो फ़क़त हमारा नसीब थी
कि जो रोग हम ने लगा लिया किसी और को तो लगा नहीं
ज़रा देखना कि वो कौन है पस-ए-रम्ज़-ए-वहशत-ए-आशिक़ी
भला किस ने हम को शिकस्त दी कभी पहले ऐसा हुआ नहीं
जिसे पास आना था आ गया और नफ़स के तार भी जुड़ गए
कि तलब की थीं यही मंज़िलें कोई फ़ासला तो रहा नहीं
बड़ी वुसअतें हैं ज़मीन पर हमें और चाहिए क्या मगर
वो जो हुस्न उस की नज़र में है कोई उस से बढ़ कर मिला नहीं
वो जो मिल चुकी हैं अज़िय्यतें चलो मान लें कि बहुत हुआ
मगर अब मिला है जो हौसला किसी और को तो मिला नहीं
ग़ज़ल
कभी तुम ने कुछ तो दिया नहीं कभी हम ने कुछ तो लिया नहीं
अहमद हमेश