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कभी किसी ने जो दिल दुखाया तो दिल को समझा गई उदासी | शाही शायरी
kabhi kisi ne jo dil dukhaya to dil ko samjha gai udasi

ग़ज़ल

कभी किसी ने जो दिल दुखाया तो दिल को समझा गई उदासी

त्रिपुरारि

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कभी किसी ने जो दिल दुखाया तो दिल को समझा गई उदासी
मोहब्बतों के उसूल सारे हमें भी सिखला गई उदासी

तुम्हें जो सोचा तो मेरे दिल से उदासियों का हुजूम गुज़रा
कभी कभी तो हुआ है यूँ भी कि बे-सबब छा गई उदासी

पड़ी हुई थी निढाल हो कर हमारी आँखों के आँगनों में
किसी की आहट सुनी तो चौंकी ज़रा सी घबरा गई उदासी

ज़रा सी दूरी पे बैठ कर वो निगाह मुझ से मिला रही थी
जो अपनी बाँहों में भर लिया तो अदा से शरमा गई उदासी

वो दौर भी था कि फ़ासलों से गुज़र रही थी नदी की सूरत
न जाने किस की दुआ है यारों कि मुझ में भी आ गई उदासी

न जाने किन पहलुओं में रह कर हुई है गहरी मिरी उदासी
न जाने किन किन लबों से पी कर ये ज़िंदगी पा गई उदासी

मिली थी जिस दिन लगा था यूँ के नहीं बनेगी कभी हमारी
जो साथ हम ने बिताए कुछ दिन तो एक दिन भा गई उदासी