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कार-ए-दीं उस बुत के हाथों हाए अबतर हो गया | शाही शायरी
kar-e-din us but ke hathon hae abtar ho gaya

ग़ज़ल

कार-ए-दीं उस बुत के हाथों हाए अबतर हो गया

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

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कार-ए-दीं उस बुत के हाथों हाए अबतर हो गया
जिस मुसलमाँ ने उसे देखा वो काफ़र हो गया

दिलबरों के नक़्श-ए-पा में है सदफ़ का सा असर
जो मिरा आँसू गिरा उस में सो गौहर हो गया

क्या बदन होगा कि जिस के खोलते जामे का बंद
बर्ग-ए-गुल की तरह हर नाख़ुन मोअ'त्तर हो गया

आँख से निकले प आँसू का ख़ुदा हाफ़िज़ 'यक़ीं'
घर से जो बाहर गया लड़का सो अबतर हो गया