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काम आती नहीं अब कोई तदबीर हमारी | शाही शायरी
kaam aati nahin ab koi tadbir hamari

ग़ज़ल

काम आती नहीं अब कोई तदबीर हमारी

सुल्तान अख़्तर

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काम आती नहीं अब कोई तदबीर हमारी
हम से है ख़फ़ा साहिबो तक़दीर हमारी

आता ही नहीं बाज़ कभी कार-ए-ज़ियाँ से
पानी पे बनाता है वो तस्वीर हमारी

अब सर पे ठहरती नहीं दस्तार-ए-शुजाअत
ख़ुद अपना लहू पीती है शमशीर हमारी

हम ख़ाना-ख़राबी के असर से नहीं निकले
पूरी न हुई हसरत-ए-तामीर हमारी

अब रू-ब-रू आती ही नहीं सुब्ह-ए-मसर्रत
टलती ही नहीं है शब-ए-दिल-गीर हमारी

हर शख़्स हक़ारत से हमें देख रहा है
कोई भी बताता नहीं तक़्सीर हमारी

वो गोशा-ए-तन्हाई में पढ़ता है शब ओ रोज़
उस के वरक़ दिल पे है तहरीर हमारी

गुमराह न होने दिया साबित-क़दमी ने
शाइस्ता-ए-तहज़ीब है ज़ंजीर हमारी

हम वज्द में डूबे रहे और रेत की सूरत
मुट्ठी से सरकती रही जागीर हमारी

बे-ताब-ओ-तवाँ ज़ीनत-ए-दीवार है 'अख़्तर'
अब लर्ज़ा-बर-अंदाम है शमशीर हमारी