EN اردو
जुनूँ तलाश में है पा न ले बहार मुझे | शाही शायरी
junun talash mein hai pa na le bahaar mujhe

ग़ज़ल

जुनूँ तलाश में है पा न ले बहार मुझे

नातिक़ गुलावठी

;

जुनूँ तलाश में है पा न ले बहार मुझे
नदीम! अब न मिरे नाम से पुकार मुझे

सुरूर-ए-बादा-ए-ना-ख़ुर्दा रक़्स-ए-बज़्म-ए-हयात
बहुत पसंद है आईन-ए-इंतिज़ार मुझे

फिर आज हम-सफ़र-ए-ज़िंदगी कहाँ हूँ मैं
ये कौन राह भुलाता है बार बार मुझे

ज़माना-साज़ी-ए-अहबाब अभी नहीं समझा
समझ रहा हूँ ज़माना है साज़गार मुझे

सुक़ूत-ए-नब्ज़ ख़बर है सुकून-ए-ख़ातिर की
अब आ चला है अब आ जाएगा क़रार मुझे

गो दोस्ती न सही दुश्मनी निबाह तो दी
मिला नसीब से दुश्मन वफ़ा-शिआर मुझे

अदम का ज़िंदा नमूना हूँ मैं यहाँ 'नातिक़'
वजूद माँग के लाया है मुस्तआर मुझे