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जुनूँ का कोई फ़साना तो हाथ आने दो | शाही शायरी
junun ka koi fasana to hath aane do

ग़ज़ल

जुनूँ का कोई फ़साना तो हाथ आने दो

ख़ालिद मलिक साहिल

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जुनूँ का कोई फ़साना तो हाथ आने दो
मैं रो पड़ूँगा बहाना तो हाथ आने दो

मैं अपनी ज़ात के रौशन करूँगा वीराने
क़ुबूलियत का ज़माना तो हाथ आने दो

मैं रूप और सँवारूंगा दास्तानों के
किसी का क़िस्सा पुराना तो हाथ आने दो

मिरी नज़र में ज़माने की कज-अदाई है
निशाँ बहुत हैं निशाना तो हाथ आने दो

ख़रीद लूँगा मैं दुनिया ज़मीर की 'साहिल'
ज़रा रुको ये ख़ज़ाना तो हाथ आने दो