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जुनूँ इरफ़ान बन कर रह गया है | शाही शायरी
junun irfan ban kar rah gaya hai

ग़ज़ल

जुनूँ इरफ़ान बन कर रह गया है

कृष्ण मोहन

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जुनूँ इरफ़ान बन कर रह गया है
ये कुफ़्र ईमान बन कर रह गया है

ये कॉफ़ी-घर मिरी शामों का मेहवर
मिरी पहचान बन कर रह गया है

फ़रिश्ता जिस को बनना था वो इंसाँ
फ़क़त हैवान बन कर रह गया है

वो था इक नुक्ता-दाँ ख़ुश-फ़िक्र शाएर
मगर नादान बन कर रह गया है

सुख़न मेरा तिरी बज़्म-ए-तरब में
सुरीली तान बन कर रह गया है

ये कैसी महवियत है मेरा होना
तिरा पैमान बन कर रह गया है

हुए ना-पैद एहसास-ओ-तख़य्युल
अदब बे-जान बन कर रह गया है

जदीदियत में बे-चारा सुखनवर
ख़िरद की शान बन कर रह गया है

दबिस्तान-ए-सुख़न अब 'कृष्ण' मोहन
शुऊरिस्तान बन कर रह गया है