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जोश-ए-तकमील-ए-तमन्ना है ख़ुदा ख़ैर करे | शाही शायरी
josh-e-takmil-e-tamanna hai KHuda KHair kare

ग़ज़ल

जोश-ए-तकमील-ए-तमन्ना है ख़ुदा ख़ैर करे

अमर सिंह फ़िगार

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जोश-ए-तकमील-ए-तमन्ना है ख़ुदा ख़ैर करे
ख़ाक होने का अंदेशा है ख़ुदा ख़ैर करे

जाँ-निसारों को नतीजे का तसव्वुर ही कहाँ
आईना संग पे मरता है ख़ुदा ख़ैर करे

सब ने रस्मी ही हँसी लब पे सजा रक्खी है
हर कोई दर्द में डूबा है ख़ुदा ख़ैर करे

प्यास पानी के तजस्सुस में भटकती है जहाँ
दूर तक रेत का दरिया है ख़ुदा ख़ैर करे

इक तरफ़ वक़्त के मुँह-ज़ोर बगूलों का हुजूम
इक तरफ़ ज़र्द सा पत्ता है ख़ुदा ख़ैर करे

तू ने घर यूँ तो बुलंदी पे बनाया है 'फ़िगार'
तू मगर नींद में चलता है ख़ुदा ख़ैर करे