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जो रोज़ की है बात वही बात करो हो | शाही शायरी
jo roz ki hai baat wahi baat karo ho

ग़ज़ल

जो रोज़ की है बात वही बात करो हो

जावेद नसीमी

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जो रोज़ की है बात वही बात करो हो
बेकार ही यारो ग़म-ए-हालात करो हो

इक मुझ से ही मिलने को तुम्हें वक़्त नहीं है
औरों पे तो अक्सर ही इनायात करो हो

ये तर्ज़-ए-तकल्लुम तुम्हें आया है कहाँ से
होंटों से जो ये फूलों की बरसात करो हो

क्यूँ चाँद से चेहरे पे गिरा रखी हैं ज़ुल्फ़ें
क्यूँ दिन को अमावस की सियह रात करो हो

बे-वहम-ओ-गुमाँ राह में मिल जाते हो अक्सर
दानिस्ता कहाँ मुझ से मुलाक़ात करो हो