जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब
मिरा मशरब है रिंदी रिंद को मज़हब से क्या मतलब
किताब-ए-दर्स-ए-मजनूँ मुसहफ़-रुख़्सार-ए-लैला है
हरीफ़-ए-नुक्ता-दान-ए-इश्क़ को मकतब से क्या मतलब
हसीनान-ए-दो-आलम में है जल्वा हुस्न-ए-यकता का
नज़र में हुस्न-ए-यकता जब हुआ उन सब से क्या मतलब
हमारा होश हर-दम आश्ना-ए-नहनो-अक़रब है
हुज़ूरी जिस को हासिल हो उसे यारब से क्या मतलब
तमन्नाएँ बर आईं अपनी तर्क-ए-मुद्दआ हो कर
हुआ दिल बे-तमन्ना अब रहा मतलब से क्या मतलब
हमारे अर्सा-ए-शतरंज में है शाह दीवाना
जिसे हासिल हो आज़ादी उसे अरदब से क्या मतलब
हमारा सज्दा है हर गाम पर पीर-ए-तरीक़त को
सुलूक-ए-इश्क़ में सर है क़दम मरकब से क्या मतलब
हमें तो यार से मतलब है 'साहिर' और यारी से
हमारा यार और अग़्यार के मतलब से क्या मतलब

ग़ज़ल
जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब
साहिर देहल्वी