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जो जाँ से है अज़ीज़ उसे तू जुदा भी रख | शाही शायरी
jo jaan se hai aziz use tu juda bhi rakh

ग़ज़ल

जो जाँ से है अज़ीज़ उसे तू जुदा भी रख

मरग़ूब अली

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जो जाँ से है अज़ीज़ उसे तू जुदा भी रख
ख़ुशियों के मुँह में दर्द भरा ज़ाइक़ा भी रख

हर रास्ता कहीं न कहीं मुड़ ही जाएगा
रिश्तों के बीच थोड़ा बहुत फ़ासला भी रख

यूँ भी न हो कि जो भी उठे तुझ में झाँक ले
ख़ुद में न यूँ सिमट कोई दर्द-आश्ना भी रख

ऐसा न हो कि ताज़ा हवा अजनबी लगे
कमरे का एक-आध दरीचा खुला भी रख

शाख़ और फूल रिश्ता-ए-यक-लम्हा के असीर
अपनी तलब के सामने ये आइना भी रख