EN اردو
जो जा चुके हैं ग़ालिबन उतरें कभी ज़ीना तिरा | शाही शायरी
jo ja chuke hain ghaaliban utren kabhi zina tera

ग़ज़ल

जो जा चुके हैं ग़ालिबन उतरें कभी ज़ीना तिरा

एजाज़ उबैद

;

जो जा चुके हैं ग़ालिबन उतरें कभी ज़ीना तिरा
ऐ कहकशाँ ऐ कहकशाँ रौशन रहे रस्ता तिरा

ख़ूँ-नाबा-ए-दिल की कशीद आख़िर को तिरे दम से है
कहने को मेरा मय-कदा लेकिन है मय-ख़ाना तिरा

पल-भर में बादल छा गए और ख़ूब बरसातें हुईं
कल चौदहवीं की रात में कुछ यूँ ख़याल आया तिरा

ऐ ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी कुछ रौशनी कुछ रौशनी
चला रहा था शहर में मुद्दत से दीवाना तिरा

अब गायकों में नाम है वर्ना जो अपने गीत थे
सारे दिल के ज़ख़्म थे दर-अस्ल एहसाँ था तिरा

ग़ज़लें मिरी तेरे लिए यादें तिरी मेरे लिए
ये इश्क़ है पूँजी मिरी ये शे'र सरमाया तिरा