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जो होनी थी वो हम-नशीं हो चुकी | शाही शायरी
jo honi thi wo ham-nashin ho chuki

ग़ज़ल

जो होनी थी वो हम-नशीं हो चुकी

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

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जो होनी थी वो हम-नशीं हो चुकी
मिरे मुद्दआ पर नहीं हो चुकी

बुरा हो मिरी ना-तवानी तिरा
निगाह-ए-दम-ए-वापसीं हो चुकी

उमीद-ए-करम कुछ न साक़ी से रख
कि अब वो मय-ए-सात्गीं हो चुकी

सुनाऊँ अगर ता-क़यामत तो क्या
कहानी मिरी दिल-नशीं हो चुकी

करूँ किस तरह अब मैं अर्ज़-ए-नियाज़
कि बाक़ी है दर और जबीं हो चुकी

तराविश कहाँ ज़ख़्म-ए-दिल में वो अब
कहीं कुछ रही है कहीं हो चुकी

बस अब हाथ से रख दो 'शैदा' क़लम
तुम्हारी ग़ज़ल की ज़मीं हो चुकी