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जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो | शाही शायरी
jo dil ne kahi lab pe kahan aai hai dekho

ग़ज़ल

जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो

ज़ेहरा निगाह

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जो दिल ने कही लब पे कहाँ आई है देखो
अब महफ़िल याराँ में भी तन्हाई है देखो

फूलों से हवा भी कभी घबराई है देखो
ग़ुंचों से भी शबनम कभी कतराई है देखो

अब ज़ौक़-ए-तलब वज्ह-ए-जुनूँ ठहर गया है
और अर्ज़-ए-वफ़ा बाइस-ए-रुस्वाई है देखो

ग़म अपने ही अश्कों का ख़रीदा हुआ है
दिल अपनी ही हालत का तमाशाई है देखो