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जो दिल को दीजे तो दिल में ख़ुश हो करे है किस किस तरह से हलचल | शाही शायरी
jo dil ko dije to dil mein KHush ho kare hai kis kis tarah se halchal

ग़ज़ल

जो दिल को दीजे तो दिल में ख़ुश हो करे है किस किस तरह से हलचल

नज़ीर अकबराबादी

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जो दिल को दीजे तो दिल में ख़ुश हो करे है किस किस तरह से हलचल
अगर न दीजे तो वूहीं क्या क्या जतावे ख़फ़्गी इताब अकड़-बल

जो इस बहाने से हाथ पकड़ें कि देख दिल की धड़क हमारे
तो हाथ झप से छुड़ा ले कह कर मुझे नहीं है कुछ इस की अटकल

जो छुप के देखें तो ताड़ जावे वगर सरीहन तो देखो फुरती
कि आते आते निगाह रुख़ तक छुपा ले मुँह को उलट के आँचल

करे जो व'अदा तो इस तरह का कि दिल को सुनते ही हो तसल्ली
जो सोचिए फिर तो कैसा व'अदा फ़क़त बहाना फ़रेब और छल

न जुल में आवे न भिड़ के निकले न पास बैठे 'नज़ीर' इक दम
बड़ा ही पुर-फ़न बड़ा ही स्याना बड़ा ही शोख़ और बड़ा ही चंचल