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जो भी कुछ अच्छा बुरा होना है जल्दी हो जाए | शाही शायरी
jo bhi kuchh achchha bura hona hai jaldi ho jae

ग़ज़ल

जो भी कुछ अच्छा बुरा होना है जल्दी हो जाए

रउफ़ रज़ा

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जो भी कुछ अच्छा बुरा होना है जल्दी हो जाए
शहर जागे या मिरी नींद ही गहरी हो जाए

यार उकताए हुए रहते हैं ऐसा कर लूँ
आज की शाम कोई झूटी कहानी हो जाए

यूँ भी हो जाए कि बरता हुआ रस्ता न मिले
कोई शब लौट के घर जाना ज़रूरी हो जाए

याद आए तो बदलने लगे घर की सूरत
ताक़ में जलती हुई रात पुरानी हो जाए

हम से क्या पूछते हो शहर के बारे में 'रज़ा'
बस कोई भीड़ जो गूँगी कभी बहरी हो जाए