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जिस्म पर साबुन था पानी ग़ुस्ल-ख़ाने से गया | शाही शायरी
jism par sabun tha pani ghusl-KHane se gaya

ग़ज़ल

जिस्म पर साबुन था पानी ग़ुस्ल-ख़ाने से गया

खालिद इरफ़ान

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जिस्म पर साबुन था पानी ग़ुस्ल-ख़ाने से गया
आप की मिस्टेक ठहरी मैं नहाने से गया

इक मिनिस्टर ने सजाई महफ़िल-ए-रक़्स-ओ-सुरूर
नाचने वाली का बिल क़ौमी ख़ज़ाने से गया

क़ादरी ने डाँट कुछ ऐसी पिलाई शेर को
शेर मुस्लिम-लीग का था दुम हिलाने से गया

आ गया था एक शायर दोस्त पाकिस्तान से
चाय से ठहरा रहा व्हिस्की पिलाने से गया

फ़िल्म तक़्सीम-ए-विरासत का यही दी-एण्ड है
दर्द कुछ ऐसा था जो गर्दन दबाने से गया

इक ग़रीब उस्ताद की टीयूशन ठिकाने लग गई
माजिदा दुल्हन बनी टीचर पढ़ाने से गया

उस के गालों पर कई दस्त-ए-हिनाई सब्त हैं
इश्क़ का नश्शा था आख़िर मार खाने से गया

इतनी महँगाई है बिरयानी कोई लाता नहीं
फिर कोई भूका मुजावर आस्ताने से गया

उस की मय्यत में सभी अख़बार पढ़ पढ़ कर गए
'ख़ालिद'-ए-इरफ़ान शायर था बुलाने से गया