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जिस तरफ़ भी देखती हूँ एक ही तस्वीर है | शाही शायरी
jis taraf bhi dekhti hun ek hi taswir hai

ग़ज़ल

जिस तरफ़ भी देखती हूँ एक ही तस्वीर है

रख़शां हाशमी

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जिस तरफ़ भी देखती हूँ एक ही तस्वीर है
ऐ ख़ुदा क्या वो मिरी क़िस्मत में भी तहरीर है

इस हथेली पे मोहब्बत की लकीरें हैं बहुत
हाँ मगर ज़ंजीर में उलझा ख़त-ए-तक़्दीर है

मेरे रस्ते में खड़ी है चीन की दीवार सी
इस तरफ़ हैं ख़्वाब मेरे उस तरफ़ ता'बीर है

जाने क्यूँ मेंहदी रचा रक्खी है मेरे वीर ने
जाने क्यूँ हम लड़कियों के पाँव में ज़ंजीर है

हम तो करते थे मोहब्बत भी इबादत की तरह
अब खुला 'रख़्शाँ' मोहब्बत क़ाबिल-ए-ताज़ीर है