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जिस को हस्ती ओ अदम जानते हैं | शाही शायरी
jis ko hasti o adam jaante hain

ग़ज़ल

जिस को हस्ती ओ अदम जानते हैं

क़ाएम चाँदपुरी

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जिस को हस्ती ओ अदम जानते हैं
है वो कुछ और ही हम जाते हैं

कूचा-ए-जुम्ब से मुल्हक़ है शैख़
हम जिसे राह-ए-हरम जानते हैं

जुज़्व ओ कुल एक है जूँ क़तरा-ए-बहर
बहुत इस रम्ज़ को कम जानते हैं

शाहिद-ए-ख़ूब ओ मकान-ए-दिलचस्प
हम यही हूर ओ इरम जानते हैं

कह न मत खा मिरे सर की सौगंद
हम तो इक ये ही क़सम जानते हैं

कहते हो आऊँगा मैं इक दम में
ऐसे हम सैकड़ों दम जानते हैं

दिल जो ताबे न हो अपने 'क़ाएम'
हम उसे छाती पे जम जानते हैं