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जिस को देखो ज़र्द चेहरा आँख पथराई हुई | शाही शायरी
jis ko dekho zard chehra aankh pathrai hui

ग़ज़ल

जिस को देखो ज़र्द चेहरा आँख पथराई हुई

मुर्तज़ा बिरलास

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जिस को देखो ज़र्द चेहरा आँख पथराई हुई
ख़ूब ऐ ईसा-नफ़स तेरी मसीहाई हुई

कर्ब की इक मुश्तरक तहरीर हर चेहरे पे थी
अजनबी लोगों से पल भर में शनासाई हुई

बे-उसूली मस्लहत के नाम से फूली-फली
हम उसूलों पर लगे जीने तो रुस्वाई हुई

कर रहा हूँ हाल में गुज़रे हुए लम्हे तलाश
गुत्थियाँ सुलझा रहा हूँ अपनी उलझाई हुई

सर से ऊँचा था जो पानी सर से ऊँचा ही रहा
जितना क़द बढ़ता गया उतनी ही गहराई हुई