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जिस को देखो ख़्वाब में उलझा बैठा है | शाही शायरी
jis ko dekho KHwab mein uljha baiTha hai

ग़ज़ल

जिस को देखो ख़्वाब में उलझा बैठा है

मशकूर हुसैन याद

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जिस को देखो ख़्वाब में उलझा बैठा है
अपने ही पायाब में उलझा बैठा है

आँसू आँसू जिस ने दरिया पार किए
क़तरा क़तरा आब में उलझा बैठा है

भूल के जौहरी अपने लाल-ओ-जवाहर को
शौक़-ए-दुर-ए-नायाब में उलझा बैठा है

वो जो बगूला बन कर उड़ता फिरता था
धागा धागा सराब में उलझा बैठा है

निस्फ़ नहार पे यूँ लगता है सूरज भी
वक़्त की आब-ओ-ताब में उलझा बैठा है

याद-ए-किताब-ए-शौक़ न होगी ख़त्म कभी
इंसाँ इक इक बाब में उलझा बैठा है