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जिन्नों आज़माना पड़ा ज़िंदगी में | शाही शायरी
jinnon aazmana paDa zindagi mein

ग़ज़ल

जिन्नों आज़माना पड़ा ज़िंदगी में

प्रमोद शर्मा असर

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जिन्नों आज़माना पड़ा ज़िंदगी में
सभी कुछ निभाना पड़ा ज़िंदगी में

सही जिस पे बैठे न सुर-ताल मेरे
वो नग़्मा भी गाना पड़ा ज़िंदगी में

न दस्तार जाए इसी ज़िद में हम को
बहुत कुछ गँवाना पड़ा ज़िंदगी में

जो बेकार बातों पे रूठे थे हम से
उन्हें भी मनाना पड़ा ज़िंदगी में

मिले हम को कुछ लोग ऐसे भी जिन से
स्वयंम को बचाना पड़ा ज़िंदगी में

वो गहराई में कितने उतरे हैं दिल की
सभी से छुपाना पड़ा ज़िंदगी में

रहे ऐसे हालात बचपन से जिन में
'असर' ख़ुद कमाना पड़ा ज़िंदगी में