जी का जंजाल है इश्क़ मियाँ क़िस्सा ये तमाम करो 'वाली'
बड़ी रात गई अब सो जाओ कुछ देर आराम करो 'वाली'
सब जागने वाले रातों के शब-ज़िंदा-दार नहीं होते
तुम अपने साथ में औरों की क्यूँ नींद हराम करो 'वाली'
सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
सब चाक दिलों के सिल जाएँ कोई ऐसा काम करो 'वाली'
क्यूँ घबराए घबराए हो क्यूँ उकताए उकताए हो
इक मुद्दत के ब'अद आए हो कुछ दिन तो क़याम करो 'वाली'
हम दारा हैं न सिकंदर हैं दरवेश हैं मस्त क़लंदर हैं
चाहो तो हमारे साथ बसर तुम भी इक शाम करो 'वाली'
जब भूल गए तुम यारों को अपने प्यारों दिल-दारों को
फिर शहर के मंसब-दारों को झुक के सलाम करो 'वाली'
तुम नाहक़ भेस बदलते हो हम को यूँही अच्छे लगते हो
क्यूँ क़श्क़ा खींचो दैर में बैठो तर्क-ए-इस्लाम करो 'वाली'
ग़ज़ल
जी का जंजाल है इश्क़ मियाँ क़िस्सा ये तमाम करो 'वाली'
वाली आसी