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जी चाहता है जीना जज़्बात के मुताबिक़ | शाही शायरी
ji chahta hai jina jazbaat ke mutabiq

ग़ज़ल

जी चाहता है जीना जज़्बात के मुताबिक़

इफ़्तिख़ार राग़िब

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जी चाहता है जीना जज़्बात के मुताबिक़
हालात कर रहे हैं हालात के मुताबिक़

जिस दर्जा हिज्र-रुत में आँखें बरस रही हैं
ग़ज़लें भी उग रही हैं बरसात के मुताबिक़

सुख चैन और ख़ुशी का अंदाज़ा मत लगाओ
अस्बाब ओ माल-ओ-ज़र की बुहतात के मुताबिक़

हो शहर के मुताबिक़ हासिल हर इक सहूलत
माहौल पर सुकूँ हो देहात के मुताबिक़

देखो ख़ुलूस-ए-नियत जज़्बात और मोहब्बत
मत चाहतों को तोलो सौग़ात के मुताबिक़

चादर ही के मुताबिक़ फैलाओ पाँव 'राग़िब'
मेआर-ए-ज़ीस्त रक्खा औक़ात के मुताबिक़