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जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात | शाही शायरी
jazbe mein suluk aur nafi mein hai jo isbaat

ग़ज़ल

जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

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जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
ऐ सालिक-ए-मज्ज़ूब ये है सैर-ए-मक़ामात

तज्दीद-ए-मिसाली में है तफ़रीद-ए-मुजर्रद
तौहीद है ये और हैं बे-सर्फ़ा ख़यालात

बे-रंग में नैरंग है वहदत में है कसरत
आदाद हों अफ़राद जो हो तर्क-ए-इज़ाफ़ात

ख़ल्वत में हुआ जल्वा सफ़र में भी वतन है
आफ़ाक़ में अन्फ़ुस है ऊलुल-अज़्म-ए-कमालत

आग़ाज़ में अंजाम है फ़र्जाम में आराम
ऐ सालिक-ए-शत्तार बिदायात निहायात

तफ़रीक़ में है जम्अ' तजल्ली में हुआ सित्र
तहक़ीक़ में तारीफ़ है तक़लीद-ए-हिकायात

मस्तूरी में मस्ती है यहाँ सहव में है महव
ऐ साक़ी-ए-शोरीदा-ओ-उरियान-ए-ख़राबात