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जज़्ब कुछ तितलियों के पर में है | शाही शायरी
jazb kuchh titliyon ke par mein hai

ग़ज़ल

जज़्ब कुछ तितलियों के पर में है

आलोक मिश्रा

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जज़्ब कुछ तितलियों के पर में है
कैसी ख़ुशबू सी उस कलर में है

आने वाला है कोई सहरा क्या
गर्द ही गर्द रहगुज़र में है

जब से देखा है ख़्वाब में उस को
दिल मुसलसल किसी सफ़र में है

छू के गाड़ी बग़ल से क्या गुज़री
बे-ख़याली सी इक नज़र में है

मैं भी बिखरा हुआ हूँ अपनों में
वो भी तन्हा सा अपने घर में है

रात तुम याद भी नहीं आए
फिर उदासी सी क्यूँ सहर में है

उस की ख़ामोशी गूँजती होगी
शोर बरपा जो दिल-खंडर में है

हाथ सर पर वो शाख़ें रखती हैं
कोई अपना सा उस शजर में है